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“सम्मोहन से बदल सकता है हमारा जीवन !” – स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

प्रश्न-हिप्नोसिस के बारे में मेरी अभी धारणा ऐसी है कि यह एक ऐसा प्रोसेस है, जिसके थ्रू कोई मित्र बाहर से सजेशन देकर, और हम अपने मन की कुशलता को यूज़ करके अपने ही अचेतन में प्रवेश करते हैं। और वहां पर छिपी हुई जो निगेटिव प्रोग्रामिंग है या गलत धारणाएं या आदत हैं जिनकी वजह से आज हमें परेशानियां भुगतनी पड़ रही है या जो हमारे व्यवहार को इन्फ्लुएंस करती हैं निगेटिव चीजें उनके प्रति अवेयर हो सकते हैं और साथ ही साथ नई प्रोग्रामिंग भी फीड कर सकते हैं उस अचेतन स्थिति में। जो कि हमारे चेतन मन की तुलना में काफी गहरी होगी और ज्यादा इन्फ्लुएंस लेकर आएगी। इस प्रोसेस को मैं हिप्नोसिस समझता हूं और मेरे यहां आने का स्पेसिफिक कारण है कि ओशो को पढ़ने के बाद मुझे हिप्नोसिस का इंपार्टेंस रिलाइज हुआ है। तो मैं चाहता हूं कि मैं हिप्नोसिस की स्थिति में जाने में कुशल हो पाऊं, ताकि मैं अपनी इनर और आउटर, दोनों की ग्रोथ के लिए इस स्थिति को यूज़ कर सकूं।

बहुत सुंदर । आपको ओशो का एक प्रवचन याद दिलाऊं ‘अप्रमाद’ जिसका शीर्षक है, पंचमहाव्रत पर, ‘ज्यों की त्यों रंग दीन्हि चदरिया’ में। उसमें ओशो कहते हैं कि हमारा मस्तिष्क, हमारा मन एक सात मंजिला मकान है, हम बीच की मंजिल में रहते हैं जिसको हम चेतन मन कहते हैं, इसके नीचे तीन परतें और हैं। एक अनकांसस माइण्ड, दूसरा कलेक्टिव अनकांसस माइण्ड और तीसरा काज्मिक अनकांसस माइण्ड। हिन्दी में हम कह सकते हैं व्यक्तिगत अचेतन, सामूहिक अचेतन और ब्रम्ह अचेतन। ठीक इसी प्रकार हमारी मंजिल के ऊपर तीन मंजिलें और हैं ऊपर की तरु। वो हैं इंडीविजुअल सुपर कांससनेस, व्यक्तिगत अतिचेतन, उसके ऊपर है कलेक्टिव सुपर कांससनेस और उसके ऊपर काज्मिक सुपर कांससनेस, सामूहिक और ब्रम्ह अतिचैतन्य। तो साधारण ध्यान समाधि की हमारी यात्रा कहां है? ऊपर की तरु है, नीचे की तरु हम उसमें नहीं जाते।

यहां हिप्नोसिस के प्रयोग में आप सबसे मैं निवेदन करूंगा क्योंकि आप सब ध्यान समाधि के साधक है मोस्टली, कृपया उस निराकार में जाने की कोशिश मत करिएगा। यहां हमको आज्ञाचक्र में और सहस्त्रार चक्र में फिलहाल नहीं जाना है, हमारी डायरेक्शन बिल्कुल उल्टी है नीचे की तरु जाना है। चूंकि हमारा एक पैटर्न बना हुआ है, जब भी हम आंख बंद करते हैं, शिथिल होते हैं तो हम तुरंत ध्यान में, साक्षीभाव में, सुपर कांससनेस में चले जाते हैं। यहां पर जरा उल्टा प्रयोग हम करने वाले हैं उस आदत से थोड़ा सम्हलकर यहां हमें गहराई में डुबकी मारना है, अपने अचेतन में जाना है। और जैसा मोहित ने कहा कि अगर हमारा अचेतन या अचेतन के गहरे हिस्से राजी हो जाते हैं किसी पाजिटिव प्रोग्रामिंग से तब उससे अद्भुत परिणाम हमारी जिंदगी में आएंगे। निगेटिव प्रोग्राम अनजाने में चली गई है।

समझो बचपन में पिता जी ने किसी बात पर डांट दिया और कहा कि तुम नालायक हो, बेवकूफ हो, किसी काम के नहीं हो या बड़े भाई ने कुछ कह दिया, स्कूल में शिक्षक ने डांट-डपट दिया कि तुमसे कुछ नहीं बनता है, बुद्धू हो, गधे हो वो हमने ग्रहण कर लिया। उस बच्चे का चेतन मन नहीं था, चेतन मन यानि तार्किक क्षमता वाला मन बच्चे के पास नहीं था। तो उसका सबकांसस माइण्ड खुला था उसमें जो डालो वही भीतर चला जाता है।

धीरे-धीरे हमने एक प्रोटेक्टिव मन विकसित किया वो जब चेतन मन विकसित हो गया। अब हम ऐसे ही किसी बात को नहीं ले लेते, कोई हमसे कहेगा कि हम गधे हैं तो हम इसको आसानी से नहीं स्वीकारेंगे बड़े होकर। लेकिन बचपन में हम इसको स्वीकार लेते थे। जब सारे लोग कह रहे हैं कि तुम बेवकूफ हो, उल्लू हो, गधे हो, कुछ नहीं होने वाला है तुमसे तो हमने उस चीज को स्वीकार लिया। और अचेतन ने एक बार स्वीकार लिया तो फिर हम वैसे हो गए, फिर हमारी निगेटिव प्रोग्रामिंग हो गई। ये हुई अनजाने में। किसी ने जानबूझकर नहीं किया था लेकिन हम हिप्नोटाइज्ड हो चुके हैं इस बात के लिए। अब अगर इस निगेटिव प्रोगामिंग को मिटाना है तो हमें पुनः उन गहराइयों मेें उतरना होगा, उसको समझना होगा कि ये हमारे साथ हो चुका है। किसी दुश्मन ने जानबूझकर नहीं किया है, लेकिन सारी परिस्थितियां ऐसी थीं कि ऐसी चीज होनी ही होनी थी और उसके हम दुष्परिणाम भुगते हैं।

लेकिन अब हम जानबूझकर सम्मोहन की विधि के द्वारा इस निगेटिव प्रोग्रामिंग को हटा सकते हैं और इसको हटाने का उपाय है एक पाजिटिव प्रोग्रामिंग से इसको रिप्लेस करना। याद रखना, निगेटिव प्रोग्राम से हम लड़ेंगे नहीं। तो नहीं वाला कोई सजेशन नहीं। ये मत कहो कि मेरे भीतर की निगेटीविटी खत्म हो क्योंकि इससे फिर आपका ध्यान निगेटीविटी पर आ गया। ये मत कहो कि मेरी फलांनी बीमारी दूर हो जाए क्योंकि इसको कहने से भी बार-बार फिर उसी बीमारी का स्मरण आ रहा है। नहीं, आप एक पाजिटिव भाव करो कि मैं बहुत ज्यादा पाजिटिव हो रहा हूं, निगेटीविटी की बात ही छोड़ दो। ये मत कहो कि मेरा घुटना दर्द ठीक हो जाए, क्योंकि इसको कहने में भी बार-बार घुटना दर्द रिपीट हो रहा है।

आप कल्पना करो अपने सुंदर, सुडौल शरीर की, कि आप बहुत स्वस्थ हो। स्वास्थ्य आपका की वर्ड बने, न कि बीमारी। मैं गधा नहीं हूं, कि उल्लू नहीं हूं ये आपका मेन प्वाइंट नहीं बने, मैं प्रतिभाशाली हूं, मैं अपनी बुद्धि का पूरा इस्तेमाल कर पाऊंगा ये विधायक फीलिंग आनी चाहिए कि मेरे भीतर इंटेलीजेंस है और मैं इसका उपयोग करूंगा पाजिटिवली। तो हमेशा पाजिटिव शब्दों का सम्मोहन में हम प्रयोग करेंगे, निगेटिव शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे। क्या नहीं होना चाहिए उसकी ओर हम नहीं जाएंगे, क्या होना चाहिए हम उसको विजुआलाइज करेंगे कि ऐसा मैं हूं।

तब आप पाएंगे की एक नई प्रोग्रामिंग शुरू हो गई। और जैसे-जैसे इसकी जड़ें गहरी जाने लगेंगी, क्योंकि थोड़ा वक्त लगेगा क्योंकि वो ओल्ड कंडिशनिंग भी बहुत पुरानी हैं, नई कंडिशनिंग बैठाने मेें हो सकता है कि आपको महीना, पंद्रह दिन लगे। लेकिन अगर आप नियमित रूप से आधा घण्टा घर जाकर रोज प्रयोग करते रहे सबकांसस में जाकर और यहां तो हम प्रयोग करेंगे रोज अलग-अलग चीजों का, घर जाकर आप प्रयोग करें तो मुख्यरूप से कोई एक समस्या ही चुनिए एक बार में। और पंद्रह-बीस दिन या महीना भर उसी में काम करिए जो आपकी मुख्य प्राब्लम है।

समझो किसी को घुटना दर्द है, कि निगेटीविटी है, गुस्से की आदत है या शराब पीने की आदत है और वो छोड़ना चाहता है या सिगरेट छोड़ना चाहता है तो एक ही चीज को चुनिए आप एक बार में। कम से कम महीना भर उसी को डिवोट करिए, दो चीजें इकट्ठी मत लीजिए। तो यहां प्रयोग में तो हम अलग-अलग सेशन में अलग-अलग बातें लेंगे ताकि आपको टेकनीक समझ में आ जाए, लेकिन घर जाकर आपको चुनिंदा अपनी मुख्य एक बात को लेकर चलना है। और महीना भर उसी को डिवोट करिए और आप देखिए कि फिर उसके कैसे जादुई परिणाम आते हैं। तो रीकंडीशनिंग हो सकती है, रीप्रोग्रामिंग हो सकती है। और निगेटिव प्रोग्राम से हम सीधा नहीं लड़ेंगे, उसको हम छेड़ेंगे ही नहीं, हम एक पाजिटिव नई प्रोग्रामिंग डालने की कोशिश करेंगे।

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

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