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“जीवन जीने की कला !” – स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

जीवन जीने की कला संक्षेप में समझाएं?
एक चुटकला सुनाता हूँ पहले, फिर संक्षेप में ही समझ में आ जाएगी बात। एक विद्यार्थी स्कूल में पहुँचा। एक पैर में लाल जूता पहना था, एक में काले रंग का। शिक्षक ने कहा कि नालायक एक काला और एक लाल जूता पहन कर क्यों आए हो?शिक्षक ने कहा कि जाओ और घर जाकर जूते बदलकर आओ। उस विद्यार्थी ने कहा कि सर घर जाने से भी कोई फायदा नहीं। घर में भी एक लाल और एक काला ही पड़ा हुआ है। जीवन जीने की कला बस इतनी ही है कि लाल और लाल को मिलाकर एक जोड़ी बना लो और काले-काले की एक जोड़ी बना लो। जिन्दगी में हमको सब कुछ मिला हुआ है। सिर्फ हमें पेअर बनानी नहीं आ रही। हम ठीक से चीजों को जमा नहीं पा रहे हैं।
ऐसा समझो कि एक गृहणी के पास कुकिंग गैस भी है, तवा भी है, बेलन भी है, आटा भी है, नमक भी है, बेसन भी है, मिर्च, मसाला, शक्कर सब कुछ है और उसे भोजन पकाने की कला नहीं आती। तो क्या होगा? चाय में वह धनिया-मिर्च डाल देगी। रोटी उसे बेलना नहीं आता, जला देगी और हो सकता है अपना हाथ भी जला ले। सब्जी उसको काटना नहीं आता। सम्भव है भिण्डी काटते-काटते अपनी लेडीज-फिंगर ही काट ले। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भिण्डी गलत है, कि आटा गलत है, कि नमक गलत है। तुम आटा बहुत कम, नमक बहुत ज्यादा कर दोगी तो रोटी खाने योग्य नहीं बनेगी। किसी को अगर कला न आती हो तो इन्हीं सब चीजों से ऐसा भोजन पकाया जा सकता है जो नुकसानदायी हो, जो बिल्कुल स्वादिष्ट न हो, जो बिल्कुल खाने योग्य न हो, जिसको खाकर पेट खराब हो जाए और इन्हीं चीजों से ऐसा भोजन भी बनाया जा सकता है, जो स्वादिष्ट हो, जो स्वास्थ्यदायी हो। चीजें वही के वही हैं। बस ठीक अनुपात में उनको जमाना है।
तो प्यारे मित्रो, वही मैं आपसे कहना चाहता हूँ- जीवन में हमें सब कुछ मिला है, जरा ठीक रेशो में, ठीक अनुपात में जमाना है। अभी हम लाल जूता और काला जूता एक-एक पहने हुए हैं, उसकी वजह से सारी गड़बड़ हो गई है। मैं आपसे नहीं कहता कि क्रोध बुरा है। क्रोध उपयोगी है। सही जगह पर इस्तेमाल करो तो। राम भी क्रोध करते हैं रावण पर। उपयोगी है। जीसस क्राइस्ट जिन्होंने प्रेम की इतनी शिक्षा दी। एक दिन जीसस भी कोड़ा लेकर पहुँच जाते हैं यहूदियों के मंदिर में। यहूदियों के मंदिरों में सूदखोरों का अड्डा था। वहाँ के जितने पुरोहित थे, सब ब्याज का धन्धा किया करते थे। गरीब लोगों को उधार देते थे और उनकी ब्याज की दर इतनी ज्यादा थी। गाँव के लोग मूलधन तो चुका ही नहीं सकते थे ब्याज चुकाना भी मुश्किल था। पीढ़ी दर पीढ़ी उधारी चलती आ रही थी। पूरा इलाका कर्ज में डूबा हुआ था। केवल यहूदियों का मंदिर और धनी-और धनी होता जाता था। जीसस क्राइस्ट कोड़ा लेकर पहुँचते हैं और उन सूदखोरों के तख्ते पलट देते हैं। उनकी दुकानें उलट देते हैं और कोड़े मार-मार के खदेड़कर उनको बाहर कर देते हैं।
कौन कहता है कि क्रोध बुरा है। महात्मा गांधी अग्रेजों पर नाराज थे। अंग्रेजों ने साउथ अफ्रीका में रेलवे के फर्स्ट क्लास से उनका सामान उठा कर बाहर फेंक दिया था कि काले आदमियों को फस्ट क्लास में नहीं बैठने देते। महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों को उठा कर भारत देश से बाहर फेंक दिया। गोरे आदमियों को यहाँ राज्य नहीं करने देते। क्या महात्मा गाँधी का क्रोध खराब है। सही जगह हर चीज का उपयोग किया जा सकता है। न तो प्रेम सदा अच्छा होता है और न क्रोध अच्छा होता है। आप अपने बच्चों को खूब ज्यादा लाड़-प्यार करो। क्या वह अच्छा होगा? आप उनको कोई अनुशासन न दो। उनको सभ्यता न सिखाओ। जो वे कहें वैसे ही करते जाओ। हर बच्चा सोचता है कि काश मेरे पिता जी की आइस्क्रीम की दुकान होती। बच्चे चाहते हैं कि वे आइस्क्रीम ही आइस्क्रीम खाएं। कहाँ बीच-बीच में सब्जी और रोटी ले आते हैं फालतू की। चॉकलेट और आइस्क्रीम ही होता दुनिया में बस और कुछ होता ही नहीं दुनिया में तो कितना मजा होता। क्या आप बच्चे की इच्छा पूरी कर दोगे? क्या प्रेम सदा अच्छा है? नहीं, न प्रेम सदा अच्छा है और न क्रोध हमेशा अच्छा है। ठीक जगह, ठीक चीज का उपयोग करना। विवेक पूर्वक, बस इसी को मैं जीवन की कला कह रहा हूँ। काले जूते के साथ काला जूता पहनना और लाल जूते के साथ लाल जूता। रोटी में जितना नमक डाला जाता है, उतना ही डालना। दाल में जो चीजें डाली जाती हैं वे दाल मे डालना। चाय में जो डालना है वे चाय में डालना। कॉम्बीनेशन को बदल मत देना कि हल्दी और जीरा और धनिया डाल दिया चाय में और कॉफी का पाउडर डाल दिया दाल में। सब गुड़गोबर हो जाएगा। बस चीजों का काम्बीनेशन बदलना है कुछ और नहीं।

– स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

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