“मानसिक या आध्यात्मिक रूप से जवान कैसे हों?” – ओशो
पहली बात, अगर बूढ़ा होना है तो मौत पर ध्यान रखना, जीवन पर नहीं।
और अगर जवान होना है तो मौत को लात मार देना। वह जब आयेगी, तब मुकाबला कर लेंगे। जब तक जीते हैं, तब तक पूरी तरह से जियेंगे, उसकी टोटलिटी में जीवन के रस को खोजेंगे, जीवन के आनन्द को खोजेंगे।
रवीन्द्रनाथ मर रहे थे। एक बूढे मित्र आये और उन्होंने कहा, अब मरते वक्त तो भगवान से प्रार्थना कर लो कि अब दोबारा जीवन में न भेजे। अब आखिरी वक्त प्रार्थना कर लो कि अब आवागमन से छुटकारा हो जाये। अब इस ख्वाब, इस गंदगी के चक्कर में न आना पड़े।
रवीन्द्रनाथ ने कहा, क्या कहते हैं आप? मैं और यह प्रार्थना करूं? मैं तो मन ही मन यह कह रहा हूं कि हे प्रभु, अगर तूने मुझे योग्य पाया हो, तो बार—बार तेरी पृथ्वी पर भेज देना। बड़ी रंगीन थी, बड़ी सुन्दर थी; ऐसे फूल नहीं देखे, ऐसा चांद, ऐसे तारे, ऐसी आंखें , ऐसा सुन्दर चेहरा! मैं दंग रह गया हूं मैं आनन्द से भर गया हूं। अगर तूने मुझे योग्य पाया हो तो हे परमात्मा, बार—बार इस दूनिया में मुझे भेज देना। मैं तो यह प्रार्थना कर रहा हूं मैं तो डरा हुआ हूं कि कहीं मैं अपात्र न सिद्ध हो जाऊं कि दोबारा न भेजा जाऊं।
रवीन्द्रनाथ को बूढ़ा बनाना बहुत मुश्किल है। शरीर बूढ़ा हो जायेगा। लेकिन इस आदमी के भीतर जो आत्मा है, वह जवान है, वह जीवन की मांग कर रही है।
रवीन्द्रनाथ ने मरने के कुछ ही घड़ी पहले, कुछ कड़ियां लिखवायी। उनमें दो कड़ियां हैं। देखा तो मैं नाचने लगा! क्या प्यारी बात कही है!
किसी मित्र ने रवीन्द्रनाथ को कहा कि तुम तो महाकवि हो, तुमने छह हजार गीत लिखे, जो संगीत में बांधे जा सकते है! शेली को लोग पश्चिम में कहते हैं, उसके तो सिर्फ दो हजार गीत संगीत में बंध सकते हैं, तुम्हारे तो छह हजार गीत! तुमसे बड़ा कोई कवि दुनिया में कभी नहीं हुआ।
रवीन्द्रनाथ की आंखों से आंसू बहने लगे। रवीन्द्रनाथ ने कहा क्या कहते हो, मैं तो भगवान से कह रहा हूं कि अभी मैंने गीत गाये कहां थे, अभी तो साज बिठा पाया था और विदा का क्षण आ गया। अभी तो ठोक—पीटकर तंबूरा ठीक किया था सिर्फ, अभी मैंने गीत गाया ही कहां था। अभी तो मैंने तंबूरे की तैयारी की थी, ठोक—पीटकर तैयार हो गया था, साज बैठ गया था। अब मैं गाने की चेष्टा करता और यह तो विदा का क्षण आ गया। और मेरे तंबूरे के ठोकने—पीटने से लोगों ने समझ लिया है कि यह महाकवि हो गया है! भगवान से कह रहा हूं कि ‘ का साज तैयार हो गया और मुझे विदा कर रहे हो? अब तो मौका आया था कि मैं गीत गाऊं। मरते रवीन्द्रनाथ कहते हैं कि अभी तो मौका आया है कि मैं गीत गाऊं!
वह यह कहे रहे थे कि अभी मौका आया था कि मैं जवान हुआ था। वह यह कह रहे हैं कि अब तो मौका आया था कि सारी तैयारी हो गयी थी और मुझे विदा कर रहे हो। बूढ़ा आदमी यह कह सकता है तो फिर वह आदमी बूढ़ा नहीं है।
अगर जवान होना है तो जिंदगी को उसको सामने से पकड़ लेना पड़ेगा। एक—एक क्षण जिन्दगी भागी जा रही है, उसे मुट्ठी में पकड़ लेना पड़ेगा, उसे जीने की पूरी चेष्टा करनी पड़ेगी। और जी केवल वे ही सकते हैं जो उसमें रस का दर्शन करते हैं। और वहां दोनों चीजें है जिन्दगी के रास्ते पर, कांटे भी हैं और फूल भी। बूढ़ा होना हो वे कांटों की गिनती कर लें। जिन्हें जवान होना हो वे फूल को गिन लें।
और मैं कहता हूं कि करोड़ कांटे भी फूल की एक पंखुड़ी के मुकाबले कम हैं। एक गुलाब की छोटी—सी पंखुड़ी इतना बड़ा मिरेकल है, इतना बड़ा चमत्कार है कि करोड़ों कांटे इकट्ठे कर लो, उससे और कुछ सिद्ध नहीं होता उससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि बड़ी अदभुत है यह दुनिया। जहां इतने कांटे हैं, वहां मखमल जैसा गुलाब का फूल पैदा हो सका है। उससे सिर्फ इतना सिद्ध होता है और कुछ भी सिद्ध नहीं होता। लेकिन यह देखने कि दृष्टि पर निर्भर है कि हम कैसे देखते हैं।
पहली बात, जिन्दगी पर ध्यान चाहिए। मेडीटेशन आन लाइफ, मौत पर नहीं। तो आदमी जवान से जवान होता चला जाता है। बुढ़ापे के अंतिम क्षण तक मौत द्वार पर भी खड़ी हो तो वैसा आदमी जवान होता है।
दूसरी बात, जो आदमी जीवन में सुंदर को देखता है, जो आदमी जवान है; वह आदमी असुंदर को मिटाने के लिए लड़ता भी है। जवानी फिर देखती नहीं, जवानी लड़ती भी है।
जवानी स्पेक्टेटर नहीं, जवानी तमाशबीन है कि तमाशा देख रहे हैं खड़े होकर।
जवानी का मतलब है जीना, तमाशगीरी नहीं।
जवानी का मतलब है सृजन।
जवानी का मतलब है सम्मिलित होना, पार्टिसिपेशन।
दूसरा सूत्र है।
खड़े होकर रास्ते के किनारे अगर देखते हो जवानी की यात्रा को, तुम तमाशबीन हो; तुम जवान नहीं हो, एक निक्रिय देखने वाले। निष्क्रिय देखने वाला आदमी जवान नहीं हो सकता। जवान सम्मिलित होता है जीवन में।
और जिस आदमी को सौंन्दर्य से प्रेम है, जिस आदमी को जीवन का आल्हाद है, वह जीवन को बनाने के लिए श्रम करता है, सुन्दर बनाने के लिए श्रम करता है। वह जीवन की कुरूपता से लड़ता है, वह जीवन को कुरूप करने वालों के खिलाफ विद्रोह करता है। कितनी कुरूपता है समाज में और जिन्दगी में?
अगर तुम्हें प्रेम है सौंदर्य से.. तो एक युवक एक सुंदर लड़की की तस्वीर लेकर बैठ जाये और पूजा करने लगे? एक युवती एक सुंदर युवक की तस्वीर लेकर बैठ जाय और कविताएं करने लगे? इतने से जवानी का काम पूरा नहीं हो जाता?
सौंदर्य से प्रेम का मतलब है? सौंदर्य को पैदा करो, क्रियेट, करो; जिन्दगी को सुंदर बनाओ। आनंद की उपलब्धि और आनंद की आकांक्षा और अनुभूति को बिखराओ। फूलों को चाहते हो तो फूलों को पैदा करने की चेष्टा में संलग्र हो जाओ। जैसा तुम चाहते हो जिन्दगी को वैसी बनाओ।
जवानी मांग करती है कि तुम कुछ करो, खड़े होकर देखते मत रहो।
हिन्दुस्तान की जवानी तमाशबीन है। हम ऐसे रहते हैं खड़े होकर जीवन में, जैसे कोई जुलूस जा रहा है। वैसे रुके हैं, देख रहे हैं; कुछ भी हो रहा है! शोषण हो रहा है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! बेवकूफियां हो रही हैं, जवान खड़ा देख रहा है! बुद्धिहीन लोग देश को नेतृत्व दे रहे हैं, जवान खड़ा देख रहा है। जड़ता धर्मगुरु बनकर बैठी है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! सारे मुल्क के हितों को नष्ट किये जा रहे हैं, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! यह कैसी जवानी है?
कुरूपता से लड़ना पड़ेगा, असौंदर्य से लड़ना पड़ेगा, शोषण से लड़ना पड़ेगा, जिन्दगी को विकृत करने वाले तत्वों से लड़ना पड़ेगा। जो आदमी जवान होता है, वह सागर की लहरों और तूफानों में जीता है, फिर आकाश में उसकी उड़ान होनी शुरू होती है। लेकिन लड़ोगे तुम? व्यक्तिगत लड़ाई ही नहीं हैं यह, सामूहिक लड़ाई की बात है। कोई फाइट नहीं!
और बिना फाइट के, बिना लड़ाई के, जवानी निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ाई के बिना निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ती है और निखरती है, जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। सुंदर के लिए, सत्य के लिए जवानी जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। लेकिन क्या लड़ोगे?
तुम्हारे पिता आ जायेंगे, तुम्हारी गर्दन में रस्सी डालकर कहेंगे, इस लड़की से विवाह करो और तुम घोड़े पर बैठ जाओगे! तुम जवान हो? और तुम्हारे बाप जाकर कहेंगे कि दस हजार रुपये लेंगे इस लड़की के पिता से और तुम मजे से मन में गिनती करोगे कि दस हजार में स्कूटर खरीदें कि क्या करें? तुम जवान हो? ऐसी जवानी दो कौड़ी की जवानी है।
जिस लड़की को तुमने कभी चाहा नहीं, जिस लड़की को तुमने कभी प्रेम नहीं किया, जिस लड़की को तुमने कभी छुआ नहीं, उस लड़की से विवाह करने के लिए तुम पैसे के लिए राजी हो रहे हो? समाज की व्यवस्था के लिए राजी हो रहे हो? तो तुम जवान नहीं हो। तुम्हारी जिन्दगी में कभी भी वे फूल नहीं खिलेंगे, जो युवा मस्तिष्क छूता है। तुम हो ही नहीं; तुम एक मिट्टी के लौदें हो, जिसको कहीं भी सरकाया जा रहा हो, कहीं पर भी लिया जा रहा हो। कुछ भी नहीं तुम्हारे मन में, न संदेह है, न जिज्ञासा है, न संघर्ष है, न पूछ है, न इन्क्वायरी है कि यह क्या हो रहा है! कुछ भी हो रहा है, हम देख रहे हैं खड़े होकर! नहीं, ऐसे जवानी नहीं पैदा होती है।
इसलिए दूसरा सूत्र तुमसे कहता हूं और वह यह कि जवानी संघर्ष से पैदा होती है।
संघर्ष गलत के लिए भी हो सकता है और तब जवानी कुरूप हो जाती है। संघर्ष बुरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी विकृत हो जाती है। संघर्ष अधूरे की लिए भी हो सकता है, तब जवानी आत्मघात कर लेती है।
लेकिन संघर्ष जब सत्य के लिए, सुन्दर के लिए, श्रेष्ठ के लिए होता है, संघर्ष जब परमात्मा के लिए होता है, संघर्ष जब जीवन के लिए होता है; तब जवानी सुन्दर, स्वस्थ, सत्य होती चली जाती है।
हम जिसके लिए लड़ते हैं, अंततः वही हम हो जाते हैं।
लड़ो सुन्दर के लिए और तुम सुन्दर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। और मरो—सड़ो तुम—खड़े—खड़े सडोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे।
जिंदगी संघर्ष है और संघर्ष से ही पैदा होती है। जैसा हम संघर्ष करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं।
हिन्दुस्तान में कोई लड़ाई नहीं है, कोई फाइट नहीं है! सब कुछ हो रहा है, अजीब हो रहा है। हम सब हैं, देखते हैं, सब हो रहा है और होने दे रहे हैं! अगर हिन्दुस्तान की जवानी खड़ी हो जाय, तो हिन्दुस्तान में फिर ये सब नासमझियां नहीं हो सकती हैं, जो हो रही हैं। एक आवाज में टूट जायेंगी। क्योंकि जवान नहीं है, ‘ कुछ भी हो रहा है। मैं यह दूसरी बात कहता हूं। लड़ाई के मौके खोजना सत्य के लिए, ईमानदारी के लिए।
अगर अभी न लड़ सकोगे तो बुढ़ापे में कभी नहीं लड़ सकोगे। अभी तो मौका है कि ताकत है, अभी मौका है कि शक्ति है, अभी मौका है कि अनुभव ने तुम्हें बेईमान नहीं बनाया है। अभी तुम निर्दोष हो, अभी तुम सकते हो, अभी तुम्हारे भीतर आवाज उठ सकती है, यह गलत है। जैसे—जैसे उम्र बढ़ेगी, अनुभव बढ़ेगा चालाकी बढ़ेगी।
अनुभव से ज्ञान नहीं बढ़ता है, सिर्फ कनिंगनेस बढ़ती है, चालाकी बढ़ती है।
अनुभवी आदमी चालाक हो जाता है, उसकी लड़ाई कमजोर हो जाती है, वह अपना हित देखने लगता है हमें क्या मतलब है, अपनी फिक्र करो, इतनी बड़ी दुनिया के झंझट में मत पड़ो।
जवान आदमी जूझ सकता है, अभी उसे कुछ पता नहीं। अभी उसे अनुभव नहीं है चालाकियों का।
इसके पहले कि चालाकियों में तुम दीक्षित हो जाओ और तुम्हारे उपकुलपति और तुम्हारे शिक्षक और? मां—बाप दीक्षांत समारोह में तुम्हें चालाकियों के सर्टिफिकेट देंगे, उसके पहले लड़ना। शायद लडाई तुम्हारी रहे, तो तुम चालाकियों में नहीं, जीवन के अनुभव में दीक्षित हो जाओ। और शायद लड़ाई तुम्हारी जारी रहे, वह जो छिपी है भीतर आत्मा, वह निखर जाये, वह प्रकट हो जाये। और जैसे आदमी अपने भीतर छिपे हुए का पूरा अनुभव करता है, उसी दिन पूरे अर्थों में जीवित होता है।
और मैं कहता हूं कि जो आदमी एक क्षण को भी पूरे अर्थों में जीवन का रस जान लेता है, उसकी फिर कभी मृत्यु कभी नहीं होती। वह अमृत से संबंधित हो जाता है।
युवा होना अमृत से संबंधित होने का मार्ग है। युवा होना आत्मा की खोज है। युवा होना परमात्मा के मंदिर पर प्रार्थना है।
— ओशो (संभोग से समाधि कि ओर–युवक कौन (ग्याहरवां प्रवचन) )
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