अध्यात्म में ‘ऊर्जा’ या ‘एनर्जी’ शब्द का क्या अर्थ होता है?

Question

प्रश्न -अध्यात्म के जगत में जब ‘ऊर्जा’ शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसका ठीक-ठीक अभिप्राय क्या होता है?

Answer ( 1 )

  1. एक तो ‘ऊर्जा’ शब्द विज्ञान में प्रयोग किया जाता है, भौतिक ऊर्जा के रूप में। दूसरा, अध्यात्म में ऊर्जा शब्द का उपयोग चेतना के संघनित रूप के लिए किया जाता है। भीतर कांशियसनैश जब कन्डेंस्ड हो जाती है तो वह जीवन की ऊर्जा बन जाती है– लाइफ इनर्जी, वाइटल फोर्स। यह जीवन ऊर्जा अलग-अलग ढंगों से व्यक्त होती है। हमारे भीतर सात चक्र हैं, इन सात चक्रों के माध्यम से वह ऊर्जा भी सात रंगों में व्यक्त होती है। भीतर भी एक इन्द्रधनुष है। जीवन की ऊर्जा का श्वेत रंग है, किंतु सात उसके प्रगटीकरण के ढंग हैं। मूलाधार चक्र से जब वह प्रगट होती है तो हम उसे कह सकते हैं कर्म शक्ति, शरीर की मांसपेशियों की ताकत। स्वाधिष्ठान चक्र से जब जीवन शक्ति प्रगट होती है तो काम शक्ति के रूप में। मणिपुर चक्र से जब जीवन ऊर्जा अभिव्यक्त होती है तो वह प्राण शक्ति बन जाती है। चौथे चक्र अनाहत से वही ऊर्जा भाव शक्ति के रूप में, प्रेम ऊर्जा के रूप में अभिव्यक्त होती है। पांचवें चक्र विशुद्ध से वही विचार की शक्ति, साइकिक पावर बन जाती है। छठवें चक्र आज्ञा से विल पावर, संकल्प शक्ति का रूप लेती है। और सातवें चक्र सहस्रार से वह विवेक की शक्ति यानी साक्षी बन जाती है।

    जीवन ऊर्जा एक ही है उसके प्रगट होने के ढंग अलग-अलग हो जाते हैं। पुराने तथाकथित धर्मों के अनुसार ऊर्जा के निम्नतर रूपों को निंदित किया गया था। ओशो की देशनानुसार के अनुसार मैं चाहूंगा कि हमारे मन में इन सातों रूपों के प्रति कोई हाइरैरिकी की भावना न हो। इसमें कोई नीचे नहीं है, कोई ऊपर नहीं है। इन सात ढंगों से ऊर्जा अभिव्यक्त होती है। न कुछ निंदनीय है, न ही कुछ प्रशंसनीय है। हां यह सात मंजिला इमारत प्रत्येक मनुष्य को मिली है। ये चेतना के सात तल हैं, हम इन सातों तलों पर पहुंचकर वहां का आनंद लें। हर एक तल पर संपूर्णता से हम जी सकें, ऐसी हमारी क्षमता होनी चाहिए।

    ऊर्जा की सब अभिव्यक्तियां- काम से लेकर राम तक- जीवन के लिए सभी उपयोगी हैं। इसमें कोई भी उच्च या निम्न नहीं हैं। हां, शरीर में देखें तो सहस्रार ऊपर है, मूलाधार नीचे है। लेकिन वह सिर्फ एक भौतिक घटना है। आध्यात्मिक रूप से कुछ ऊपर या नीचे नहीं है।

    लेकिन तथाकथित धर्मों ने उच्चता व निम्नता की धारणा जीवन ऊर्जा के साथ जोड़ दी है। उससे बड़ी मुश्किल होती है। अच्छा हो कि हम एक ही शब्द का उपयोग करें जैसे- जीवन ऊर्जा, सूरज की श्वेत किरण, वही प्रिज्म से गुजरकर सात रूपों में विभाजित हो जाती है। ठीक वैसे ही हमारी जीवन ऊर्जा इन सात चक्रों से गुजरकर अलग-अलग अभिव्यक्तियां देती हैं।

    – स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

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