क्या सेवा (Service) करना ही पर्याप्त नहीं है? क्या गरीबों की, दीनों की, दुखियों की, सेवा करें तो उसी सर्विस से, उसी सेवा से क्या परमात्मा नहीं मिल जाएगा?

Question

प्रश्न – एक और मित्र पूछते हैं कि क्या सेवा करना ही पर्याप्त नहीं है? सेवा करें तो क्या परमात्मा की उपलब्धि नहीं हो जाएगी? क्यों पड़ें इन सारी बातों में? उन्होंने पूछा है: सेवा करें गरीबों की, दीनों की, दुखियों की, तो उसी सर्विस से, उसी सेवा से क्या नहीं मिल जाएगा प्रभु?

Answer ( 1 )

  1. नहीं; भूल कर भी कभी नहीं मिलेगा। धर्म से तो सेवा उत्पन्न हो जा सकती है, लेकिन सेवा से धर्म उत्पन्न नहीं होता है। धार्मिक व्यक्ति का जीवन तो सेवक का जीवन होता ही है, लेकिन सेवक का जीवन धार्मिक आदमी का जीवन नहीं होता है। इस तरह उलटा नहीं होता है। दीया जल जाए तो अंधेरा निकल ही जाता है, लेकिन कोई कहे कि हम अंधेरे को निकालने की कोशिश करें तो दीया जल जाएगा? तो फिर दीया नहीं जलता है। अंधेरे को मर जाएं कोशिश कर-कर के निकाल कर, अंधेरा नहीं निकलने वाला और दीया तो जलने वाला नहीं। हालांकि दीया जलता है तो अंधेरा जरूर निकल जाता है, लेकिन अंधेरे के निकलने से दीया नहीं जलता।
    चित्त में धर्म का जन्म होता है तो सेवा जरूर आ जाती है। लेकिन सेवा से कोई धर्म नहीं आता। बल्कि बिना धर्म के जो सेवा है वह भी अंधकार को ही तृप्त करती है, उसका ही साधन बनती है, वह भी कहती है, मैं हूं सेवक! मैंने की है सेवा! मैं हूं बड़ा सेवक! मुझसे बड़ा सेवक कोई भी नहीं! और ऐसा सेवा करने वाला वर्ग, जितनी मिस्चिफ, जितने उपद्रव पैदा करवाता है उसका कोई हिसाब नहीं।
    मैंने सुना है, एक चर्च का एक पादरी एक स्कूल के बच्चों को सेवा का धर्म सिखाने गया था। छोटे-छोटे बच्चे थे, उन्हें उस पादरी ने समझाया कि सेवा जरूरी करनी चाहिए, दिन में एक सेवा कम से कम जरूरी है। कोई भी सेवा का कृत्य, कोई भी। कोई भी सेवा का कृत्य अगर तुमने दिन में कर लिया एक, तो हो गई प्रार्थना। जब मैं अगली बार आऊं सात दिन बाद, तो मैं पूछूंगा कि तुमने सात दिन में कुछ सेवा के कृत्य किए।
    सात दिन बाद वह वापस लौटा, उसने उन बच्चों से पूछा कि मेरे बेटो, तुमने कुछ सेवा के काम किए? तीन बच्चों ने हाथ हिलाए, वह बहुत प्रसन्न हुआ कि कोई फिकर नहीं, तीस में से केवल तीन ने किया, लेकिन किया तो। बताओ तुम खड़े होकर, ताकि बाकी बच्चे भी जान लें कि तुमने क्या किया? तुम्हें आनंद मिला सेवा करने से?
    उन तीनों ने कहा, बहुत आनंद मिला, बहुत आनंद मिला।
    पूछा, क्या किया तुमने? कौनसी सेवा की? पहले लड़के को पूछा।
    उसने कहा, मैंने, जैसा आपने समझाया था: कोई डुबता आदमी हो तो बचाना चाहिए, कोई बूढ़ा आदमी रास्ता पार करता हो तो सहारा देना चाहिए। मैंने एक बूढ़ी औरत को रास्ता पार करवाया है।
    उसने धन्यवाद दिया, छोटा सा बच्चा था कि ठीक, बहुत ठीक। दूसरे बच्चे से पूछा, तुमने क्या किया?
    उसने कहा, मैंने भी एक बूढ़ी औरत को रास्ता पार करवाया। थोड़ी हैरानी हुई उसे, लेकिन सोचा, बहुत बूढ़े होते हैं, कोई कम तो नहीं, इसने भी किया होगा। तीसरे से पूछा, तूने क्या किया?
    उसने कहा, मैंने भी एक बूढ़ी औरत को रास्ता पार करवाया।
    उसने कहा, तुम तीनों को तीन बूढ़ी स्त्रियां मिल गईं रास्ता पार करवाने को?
    वे तीनों बोले, तीन कहां, एक ही थी, हम तीनों ने उसी को पार करवाया है।
    वह बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, क्या एक बूढ़ी औरत को पार करवाने में तीन की जरूरत पड़ी?
    उन्होंने कहा, वह पार होना ही नहीं चाहती थी, बामुश्किल हम पार करवा पाए। लेकिन सेवा करनी जरूरी थी, इसलिए हमने सेवा की। वह तो बहुत चिल्लाती थी कि मुझको उस तरफ नहीं जाना।
    आज तक पृथ्वी पर ये सेवा करने वाले ऐसे ही उपद्रव करते रहे। क्योंकि ये सोचते हैं कि हमें तो सेवा करनी है, क्योंकि सेवा करना धर्म है। इसकी फिकर ही भूल जाते हैं कि क्या कर रहे हैं ये सेवा? कौनसी सेवा हो रही है?
    जो सेवा जान कर की जाती है वह खतरनाक हो जाती है। सेवा निकलनी चाहिए सहज। सेवक सहज नहीं होता, बहुत सेल्फ-कांशस होता है। उसे बहुत अहसास होता है मैं सेवा कर रहा हूं!
    नहीं, सेवा होनी चाहिए सहज, करने वाले को उसका पता नहीं चलना चाहिए। अगर करने वाले को पता चल गया, तो सब सेवा गलत हो गई। अगर यह पता चल गया कि मैं सेवा कर रहा हूं, बात व्यर्थ हो गई, कोई मूल्य न रहा उस सेवा का। लेकिन ऐसी सेवा तो तभी पैदा हो सकती है जब पता न चले उसका। जब चित्त अहंकार से मुक्त होता और धर्म का जन्म हो जाता है, तब सारा जीवन, श्वास-श्वास सेवा बन जाती है। लेकिन उस सेवा से कभी भी यह बोध नहीं होता कि मैं सेवक हूं, मैं सेवा कर रहा हूं। फिर वह सेवा जीवन हो जाती है। वैसी सेवा तो धर्म है, लेकिन यह सेवकों की सेवा धर्म नहीं है। इससे धर्म का कोई संबंध नहीं।

    — ओशो [अंतर की खोज-प्रवचन-08]

    Best answer

Leave an answer