धर्म और विज्ञान (Science & Religion) में कैसे मेल बनाया जा सकता है?
Question
प्रश्न – विज्ञानवाद और धर्मवाद में कैसे मेल बनाया जा सकता है?
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प्रश्न – विज्ञानवाद और धर्मवाद में कैसे मेल बनाया जा सकता है?
Answer ( 1 )
विरोध नहीं है इन दोनों बातों में। और दुनिया के जो लोग सच में धार्मिक थे उनसे ज्यादा वैज्ञानिक आदमी खोजना कठिन है। महावीर, या बुद्ध, या क्राइस्ट इनसे ज्यादा वैज्ञानिक मनुष्य खोजना कठिन है। इन्होंने विज्ञान की खोज अपनी ही चेतना पर की, खुद के भीतर जो रहस्य छिपा है उसे जानना चाहा। रहस्य बाहर ही नहीं है, भीतर भी है। पत्थर-कंकड़ में, पानी में, मिट्टी में ही रहस्य नहीं है, रहस्य मुझमें भी है। हमारे भीतर भी कुछ है तो हम पदार्थ को ही जानते रहेंगे या उसको भी जो हमारे भीतर छिपी हुई चेतना है, जीवंत है? जिसे हम अभी विज्ञान करके जानते हैं वह जो बाहर है उसे खोजता है। और जिसे हम धर्म करके जानते हैं वह उसे जो भीतर है। आज नहीं कल दोनों की खोज एक हो जाने वाली है। यह खोज बहुत दिन तक दो नही रह सकती। तब दुनिया में वैज्ञानिक पद्धति होगी। उसके दो प्रयोग होंगेः पदार्थ पर और परमात्मा पर।
निश्चित ही तथाकथित धर्म इसके विरोध में खड़े होंगे। वे इसलिए खड़े होंगे कि हिंदू और मुसलमान, जैन और ईसाई, अगर विज्ञान का प्रयोग हुआ आत्मा के जीवन में भी तो ये सब नहीं बच सकेंगे। धर्म बचेगा, हिंदू नहीं बच सकेगा, मुसलमान, जैन, ईसाई नहीं बच सकेगा। क्योंकि विज्ञान जिस दिशा में भी काम करता है वही युनिवर्सल पर, सार्वलौकिक पर पहुंच जाता है। कोई हिंदू गणित हो सकता है, या मुसलमान कैमिस्ट्री हो सकती है, या ईसाई फिजिक्स हो सकती है? कोई हंसेगा अगर कोई यह कहेगा कि मुसलमानों की फिजिक्स अलग, हिंदुओं की अलग, तो हम हंसेंगे, हम कहेंगे, तुम पागल हो। पदार्थ के नियम तो वही हैं, एक ही हैं सारी दुनिया में, सब लोगों के लिए, तो एक ही फिजिक्स है, न हिंदुओं की अलग है, न मुसलमानों की, न ईसाईयों की। धर्म भी कैसे अलग-अलग हो सकते हैं? जब पदार्थ के नियम एक हैं, तो परमात्मा के नियम कैसे अलग-अलग हो सकते हैं?
जो बाहर की दुनिया है जब उसके नियम सार्वलौकिक हैं, युनिवर्सल हैं, तो मनुष्य के भीतर जो चेतना छिपी है, जीवन छिपा है, उसके नियम भी अलग-अलग नहीं हो सकते, उसके नियम भी एक ही होंगे। इसलिए वैज्ञानिक धर्म के जन्म में ये तथाकथित धर्म सब बाधा बने हुए हैं। वे नहीं चाहते कि वैज्ञानिक धर्म का जन्म हो। साइंटिफिक रिलीजन का जन्म दुनिया के सभी संप्रदायों की मृत्यु की घोषणा होगी। इसलिए वे विरोध में हैं। इसलिए वे विज्ञान के विरोध में हैं। क्योंकि वैज्ञानिकता का अंतिम प्रयोग उन सबको बहा ले जाएगा और समाप्त कर देगा। और मुझे तो लगता है इससे शुभ घड़ी दूसरी नहीं हो सकती। कि ये सब बह जाएं, दुनिया से संप्रदाय बह जाएं–हिंदू, मुसलमान, जैन, ईसाई का फासला बह जाए, आदमी बच रहे। क्योंकि इस फासले ने बहुत खतरा पैदा कर दिया है, इस फासले ने मनुष्य को मनुष्य से तोड़ दिया है। और जो चीज मनुष्य को मनुष्य से ही तोड़ देती हो वह चीज मनुष्य को परमात्मा से कैसे जोड़ सकेगी? वह नहीं जोड़ सकती। इसलिए धर्मों के नाम पर जो कुछ हुआ है, चर्च और मंदिर और शिवालय ने जो कुछ किया है, उसने मनुष्य को कल्याण और मंगल की दिशा नहीं दी, बल्कि हिंसा, रक्तपात, युद्ध और घृणा का मार्ग दिया है। सारी जमीन पर मनुष्य मनुष्य को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया है। धर्म तो प्रेम है, लेकिन धर्मों ने तो घृणा सिखा दी। धर्म तो सबको एक कर देता, लेकिन धर्मों ने तो सबको तोड़ दिया है।
एक छोटी सी घटना मैं तुम्हें कहूं, शायद उससे मेरी बात समझ में आ जाए। एक काले आदमी ने एक चर्च के द्वार पर संध्या जाकर द्वार खटखटाया, पादरी ने द्वार खोला, लेकिन देखा काला आदमी है, वह चर्च तो सफेद लोगों का था, काले आदमी के लिए उस चर्च में कोई जगह न हो सकती थी। पुराने दिन होते तो वह पादरी उसे हटा देता और कहता कि यहां तुमने आने की हिम्मत कैसे की? तुम्हारी छाया पड़ गई इन सीढ़ियों पर, सीढ़ियां अपवित्र हो गईं, इन्हें साफ करो। उसकी हत्या भी की जा सकती थी। ऐसे शूद्रों के कानों में तथाकथित धार्मिक कहे जाने वाले दुष्ट लोगों ने सीसा पिघलवा कर भरवा दिया है जिन्होंने जाकर मंदिर के पास खड़े होकर वेद-मंत्र सुन लिए हों। क्योंकि शूद्रों के कान पवित्र वेद-मंत्रों को सुनने के लिए नहीं हैं। ऐसे आदमियों की छाया पड़ जाना भी पाप और अपराध रहा है इस देश में भी, इस देश के बाहर भी। पुराने दिन होते तो शायद उस काले आदमी की जिंदगी खतरे में पड़ जाती। लेकिन दिन बदल गए हैं, लेकिन आदमी का दिल तो नहीं बदला।
उस पादरी ने कहाः मित्र, यह शब्द बिलकुल झूठा रहा होगा, क्योंकि जो उसके इरादे थे वे मित्र के बिलकुल नहीं थे। लेकिन उसने कहाः मित्र, जैसे हम सब झूठी भाषाएं बोलते हैं, वह भी बोला, और जो हमारे बीच सबसे ज्यादा चालाक, सबसे ज्यादा कनिंग हैं, वे ऐसी भाषा को बहुत, बहुत कुशल होते हैं, उसने उस नीग्रो को कहाः मित्र, इस चर्च में आए हो स्वागत है, लेकिन जब तक हृदय पवित्र नहीं है तब तक चर्च में आने से भी क्या होगा? परमात्मा के दर्शन तो तभी हो सकते हैं जब हृदय पवित्र और शांत हो। तो जाओ, पहले हृदय को करो पवित्र और फिर आना।
नीग्रो वापस लौट गया। उस पुरोहित ने मन में सोचा होगा, न होगा कभी मन पवित्र और न यह आएगा। उसके आने की कोई संभावना नहीं है। दिन आए और गए, माह आए और गए और वर्ष पूरा होने को आ गया। एक दिन चर्च के पास से निकलता दिखाई पड़ा वही नीग्रो, वही काला आदमी। वह पुरोहित हैरानी में पड़ा कि कहीं वह चर्च में तो नहीं आना चाह रहा? लेकिन नहीं, उसने तो चर्च की तरफ आंख भी उठा कर न देखा और वह चला गया अपनी राह। पुरोहित देखता रहा। हैरानी हुई उसे देख कर। उस आदमी में तो कोई बड़ी चीज जैसे बदल गई थी। उसके आस-पास जैसे शांति का एक मंडल चल रहा था। जैसे उसकी आंखों में कोई नई ज्योति, कोई नई लहर आ गई थी, कोई नई खबर। जैसे वह कुछ दूसरा आदमी हो गया था, एकदम शांत और मौन। उसकी काली चमड़ी से भी जैसे कोई चमक पैदा हो गई थी, कोई पवित्रता उससे झलकने लगी थी, उसके उठते कदमों में भी जैसे कोई अलग ही बात थी।
वह चर्च का पादरी दौड़ा और उसे रोका और कहाः महानुभाव, आप फिर दुबारा आए नहीं? वह नीग्रो हंसने लगा, उसने कहाः मैंने तुम्हारी बात मान कर मन को शांत और पवित्र करने की साधना की। और एक दिन रात जब मैं प्रार्थना करके सो गया और मेरा हृदय एकदम मौन था, तो रात मैंने सपने में देखा कि परमात्मा आए हैं और मुझसे पूछते हैं कि तू क्यों इतनी प्रार्थनाएं कर रहा है? क्यों इतनी साधना कर रहा है? क्या चाहता है? तो मैंने कहाः मैं उस चर्च में जाना चाहता हूं जो हमारे गांव में है। तो वह परमात्मा हंसने लगा और उसने कहाः तू पागल है, तू उस चर्च में कभी न जा सकेगा, क्योंकि मैं खुद दस साल से वहां जाने की कोशिश कर रहा हूं, वह पादरी मुझे घुसने नहीं देता। वह पादरी मुझे भीतर नहीं आने देता। तो जब मैं ही नहीं घुस पा रहा हूं, जिसका कि वह कहता है पादरी, यह मंदिर है, वही नहीं घुस पा रहा है, मंदिर का मालिक बाहर, तो तू कैसे घुस सकेगा? तेरी क्या हैसियत है? तो यह वरदान न मांग, कुछ और मांगना हो तो मांग ले। जब मैं ही नहीं घुस पाता हूं, तो मैं तुझे कैसे वरदान दूं कि तू जा सकेगा? इसलिए उसने कहा कि फिर मैंने आने की हिम्मत न की। जब परमात्मा भी अपने पुरोहित से डरता है तो मेरी क्या सामथ्र्य है।
मैं आपसे कहता हूं, दस साल की बात होती, तो हम किसी तरह सह भी लेते, यह दस साल की बात नहीं है, यह हजारों-हजारों साल की बात है। आज तक परमात्मा किसी पुरोहित के मंदिर में प्रवेश नहीं पा सका है, न कभी आगे भी पा सकेगा। पुरोहित और परमात्मा दोस्त नहीं हैं। पुरोहित शोषण कर रहा है, परमात्मा का दोस्त कैसे हो सकता है? पुरोहित दुकान चला रहा है परमात्मा की, दोस्त कैसे हो सकता है? पुरोहित बेच रहा है परमात्मा को, दोस्त कैसे हो सकता है? और क्योंकि हरेक पुरोहित दुकान चला रहा है, इसलिए दो पुरोहितों में भी दोस्ती नहीं हो सकती। दो दुकानदारों में दोस्ती हो सकती है? जो एक ही धंधा करते हों–प्रतिस्पर्धा हो सकती है, दोस्ती कहां? दुश्मनी हो सकती है, गला-काट प्रतियोगिता हो सकती है, दोस्ती नहीं हो सकती है। इसलिए हिंदू और मुसलमान में झगड़ा है, यह धर्मों का झगड़ा नहीं, यह हिंदू और मुसलमान पुरोहित का झगड़ा है। यह परमात्मा का झगड़ा नहीं, यह परमात्मा के नाम पर बनी हुई दुकानों का झगड़ा है। और इन दुकानों ने हजारों साल में हजारों तरह के अंधविश्वास प्रचलित किए हैं। और आदमी की आंख बंद करने की कोशिश की है। क्योंकि जब लोगों की आंखें खुल जाएंगी, उनका शोषण धर्म के नाम पर नहीं हो सकेगा।
और आई हुई विज्ञान की रोशनी ने इन सारे पुरोहितों को बड़ी घबड़ाहट पैदा कर दी है, वे बड़े बेचैन हो गए हैं। और वे कह रहे हैं कि धर्म और विज्ञान में दुश्मनी है। धर्म बात अलग है, विज्ञान बात अलग है। वह तो पूरी कोशिश उन्होंने यह की है कि विज्ञान विकसित न हो पाए। गैलीलियो से लेकर आज तक धर्म का पुरोहित हर कोशिश कर रहा है कि विज्ञान विकसित न हो पाए। क्योंकि विज्ञान का हर बढ़ता हुआ कदम अंधविश्वास की मौत लाता है। लेकिन इससे धर्म को भयभीत होने का कोई भी कारण नहीं है। धर्म तो है सत्य, विज्ञान की हर जीत सत्य की जीत है। धर्म को उससे कोई नुकसान पहुंचने वाला नहीं है। धर्मों को नुकसान पहुंचेगा, धर्म को नहीं।
तो मैं निवेदन करूं, धर्म और विज्ञान के बीच मेल खोजने की भूल मत करना। अगर मेल करने की कोशिश की तो वे मेल धर्मों और विज्ञान के बीच होगा, जो कभी नहीं हो सकता। लेकिन धर्म और विज्ञान के बीच तो सदा से मेल है। वह तो एक ही सत्य के दो पहलू हैं। इसलिए उस संबंध में मैं नहीं बता सकता कि कैसे मेल हो सकता है, क्योंकि मुझे आज तक यही समझ में नहीं आ पाया कि कोई झगड़ा हुआ है।
एक छोटी सी घटना और..।
हैनरी थारो मरणशय्या पर पड़ा हुआ था। कभी किसी ने उसे चर्च जाते नहीं देखा। कोई भला आदमी कभी नहीं जाता। भला आदमी था। कभी किसी ने उसे प्रार्थना करते नहीं देखा। कौन सज्जन आदमी कब प्रार्थना करता है? कभी किसी ने उसे बाइबिल की पूजा करते नहीं देखा। मरणशय्या पर पड़ा था। तो गांव के पादरी ने सोचा कि अब यह क्षण अच्छा है, यह मौका अच्छा है, इस वक्त मौत करीब है, घबड़ा गया होगा, अब चलें। मौत का फायदा उठाते रहे हैं पुरोहित, पादरी, तथाकथित धार्मिक लोग। जवानी में तो आदमी को नहीं पकड़ पाते तो फिर बुढ़ापे में पकड़ लेते हैं। मौत करीब होती है, भय सामने होता है, तो प्रलोभन दिया जा सकता है कि आ जाओ हमारी तरफ, मान लो हमारी बात, तो भगवान से तुम्हारे लिए सिफारिश कर देंगे कुछ, अच्छा इंतजाम कर देंगे। मरते वक्त अकेला आदमी घबड़ा उठता है। इसलिए तो चर्चों और मंदिरों में बूढ़े और बुढ़ियां दिखाई पड़ते हैं, कोई जवान आदमी दिखाई नहीं पड़ता। यह आकस्मिक नहीं है, यह कोई एक्सिडेंटल बात नहीं है। इसके पीछे कोई राज है। सोचा कि थारो अब पड़ गया है बीमार और लोग कहते हैं बचेगा नहीं।
तो गांव का पादरी इस मौके को स्वर्ण अवसर समझ कर उसके पास गया। और उसने कहा कि हैनरी थारो, महाशय, अब पश्चात्ताप कर लो। और भगवान से अपना मिलाप कर लो। प्रेम कायम कर लो। उसने जो शब्द कहे पादरी ने वे ये थे कि क्या तुमने परमात्मा और अपने बीच मेल कायम कर लिया है? हैनरी थारो ने आंख खोली, बिलकुल मरने के करीब था, लेकिन बड़ा बहादुर और धार्मिक आदमी रहा होगा, उसने कहाः क्या कहते हैं आप? मुझे याद नहीं पड़ता कि मुझमें और परमात्मा के बीच कभी झगड़ा हुआ हो, मेल करने का सवाल कहां है? मुझे याद नहीं पड़ता कि मैं कभी उससे लड़ा भी हूं, हम सदा के दोस्त हैं। तो मेल किससे करूं और कैसा करूं जब हमारा कोई झगड़ा ही कभी न हुआ हो? कभी जिंदगी में मुझे याद नहीं आता है कि हमारे और उसके बीच कोई कटुता पैदा हुई हो? जिनके मन में कटुता पैदा हुई हो वे जाएं और मेल पैदा करें और प्रार्थनाएं करें, मैं किस बात के लिए प्रार्थना करूं? किस मेल की प्रार्थना करूं।
यही मैं आपसे कहता हूं, मुझे नहीं दिखाई पड़ता है कि विज्ञान और धर्म में कभी कोई शत्रुता है। इसलिए मेल कैसा और किसका? रह गए वे धर्म जिनसे उसकी शत्रुता है, तो जितनी जल्दी उनकी अरथी निकल जाए उतना शुभ है। उतना मनुष्य-जाति के इतिहास में उससे बड़ा कोई स्वर्णिम अवसर न होगा जिस दिन धर्मों की अरथी निकल जाएगी। क्यों? क्योंकि तब धर्म का जन्म हो सकता है, एक ऐसे धर्म का जो सबका होगा और जिसमें सब होंगे। एक ऐसे धर्म का जो वैज्ञानिक होगा, अंधविश्वासी नहीं। एक ऐसे धर्म का जो श्रद्धा पर नहीं बल्कि विचार और विवेक पर खड़ा होगा। एक ऐसे धर्म का जो इस खंड का और उस खंड का नहीं होगा बल्कि अखंड और सार्वलौकिक होगा। वैसे धर्म के जन्म में धर्मों ने ही अटकाव दिया है। इसलिए वे जाते हैं तो बहुत अच्छा है। जो भी धार्मिक लोग हैं उन्हें उनकी विदाई का तत्क्षण आरंभ कर लेना चाहिए, उन्हें विदा दे देनी चाहिए।
— ओशो [अज्ञात की ओर-(प्रवचन-04) ]