ध्यान के द्वारा डिवाइन हीलिंग कैसे करें? क्या ध्यान के द्वारा चक्र उपचार संभव है?

Question

प्रश्न – ध्यान के द्वारा चक्र उपचार (डिवाइन हीलिंग) की विधि क्या है?

Answer ( 1 )

  1. स्वयं के उपचार हेतु यह विधि बहुत सरल है। विशेषकर साइको-सोमेटिक, मनो-शारीरिक बीमारियों के लिए जो भीतर से बाहर की तरफ आती हैं। इसे आसानी से कर सकते हैं- निर्देश सहित म्युज़िक के संग।

    पहला चरण है- ऊर्जा जागरण। खड़े हो जाएं। अपने शरीर को नीचे से लेकर ऊपर तक कंपित होने दें। कंपन महसूस करते हुए भाव करें कि पैर के पंजों से होती हुई ऊर्जा सिर की तरफ जा रही है। पांच मिनिट यह प्रक्रिया करने के बाद मंगल भाव से भरे हुए धीरे से बैठ जाएं। रीढ़ सीधी रखनी है, गर्दन सीधी, बिना तनाव के जितनी सीधी हो सके और फिर क्रमशः एक-एक चक्र पर संगीत के साथ भाव करना है कि ऊर्जा उस चक्र को और उस चक्र से संबंधित अंगों को स्वस्थ कर रही है।

    जैसे इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं और संगीत में सात स्वर; ठीक वैसे ही हमारे भीतर सूक्ष्म शरीर में भी सात चक्र हैं जहां से ब्रह्म-ऊर्जा प्रवाहित होती हुई हमारे स्थूल शरीर तक पहुंचती है। वे सम्पर्क बिंदु हैं। उनकी स्थिति का ख्याल रखें। पहला मूलाधार चक्र, कमर के सबसे निचले हिस्से में, मेरुदंड के अंतिम भाग जिसे काकिक्स (मेरुपुच्छ) कहते हैं, वहां पर स्थित है।

    दूसरा, जननेन्द्रिय के पीछे स्वाधिष्ठान चक्र है। तीसरा, मणिपुर चक्र नाभि के पास। चौथा, अनाहत या हृदय चक्र छाती के मध्य में। पांचवां, विशुद्ध चक्र गले में। छठवां, आज्ञाचक्र दोनों भृकुटियों के बीच में जहां तिलक लगाते हैं। और सातवां, सिर के सबसे ऊपरी हिस्से पर है सहस्रारचक्र। इन चक्रों की स्थिति सामने से और पीछे से, दोनों तरफ से स्मरण रखें। यद्यपि चक्र वस्तुतः देह के मध्य भाग में स्थित हैं। बाएं और दाएं, दोनों के ठीक मध्य में, सामने और पीछे इन दोनों के भी ठीक मध्य में। लेकिन करेस्पान्डिंग प्वाइन्ट्स, सम्पर्क बिंदुओं को हम सामने और पीछे दोनों तरफ से ख्याल में ले सकते हैं।

    शरीर के कंपन से अभ्यास करके, बैठने के उपरांत इस जागी हुई ऊर्जा का उपयोग चक्रोपचार में करते हैं। शुरुआत पीछे से करते हैं। संगीत सुनते हुए डेढ़ मिनिट तक हम भाव करते हैं कि मूलाधार चक्र स्वस्थ हो रहा है और उससे संबंधित अंग, नीचे के दोनों पैर भी स्वस्थ हो रहे हैं। क्रमशः ऊपर की ओर बढ़ते हैं, रीढ़ में चक्र की स्थिति को और ठीक से महसूस करने के लिए एक अथवा दोनों हाथेलियों से चक्र को स्पर्श करना भी उपयोगी है। हाथ से छूते ही ऊर्जा का अहसास घनीभूत रूप से होने लगता है। कल्पनाशील साधक चाहें तो चक्र का रंग भी प्रक्षेपित करके देख सकते हैं, अथवा कोई फूल या कोई और पैटर्न जो आपको पसंद आता है, भाव करें कि उस रंग का फूल उस चक्र पर खिल रहा है।

    ये जो सात रंग हैं इन्द्रधनुष के, वही हमारे चक्रों के रंग भी हैं। मूलाधार का रंग लाल है, स्वाधिष्ठान का रंग नारंगी, मणिपुर चक्र पीले रंग का, हृदय चक्र हरे रंग का, विशुद्ध चक्र नीले रंग का, आज्ञा चक्र जामुनी रंग का और सहस्रार बैंगनी रंग का है। इन रंगों की कल्पना भी सहयोगी हो जाती है। भाव करें कि संगीत की तरंगें उस चक्र तक पहुंचकर उस चक्र को स्वस्थ कर रही हैं। ब्रह्म-ऊर्जा उस चक्र पर बरस रही है, ग्रहणशील हो जाएं, पूरी तरह पैसिव और रिसेप्टिव हो जाएं। आपको कुछ करना नहीं है केवल ग्रहणशीलता का भाव—- कि आप ऊर्जा रिसीव कर रहे हैं और उस चक्र से संबंधित अंग धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे हैं। उनमें जीवन-शक्ति का प्रवाह हो रहा है।

    इस प्रकार करीब-करीब डेढ़-डेढ़ मिनिट एक चक्र को हीलिंग देते हुए क्रमशः रीढ़ की हड्डी पर पीछे से आरोह क्रम में चलेंगे। सहस्रार पर पहुंचने के बाद सामने से उतरते हुए यानी अवरोह क्रम में फिर एक-एक चक्र की हीलिंग करेंगे। इस प्रकार इन सातों चक्रों की चिकित्सा दिव्य ऊर्जा द्वारा की जाती है।

    हीलिंग के पश्चात् ध्यान में डूबें- शिथिलीकरण और आत्म स्मरण। उपचार तो एक बहाना है असली बात है ध्यान। उपचार के माध्यम से आप ग्रहणशील हो जाते हैं। ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता, ग्राहकता बढ़ जाती है। तब शिथिल होना अति-आसान है और आत्म स्मरण में डूबना भी बहुत सुगम। ऊर्जा ध्यान, सच पूछो तो ध्यान का एक प्रयोग है। इलाज को उसका एक बाइ-प्रोडक्ट, उप-उत्पत्ति समझें। मुख्य उद्देश्य तो ध्यान ही है। यद्यपि कोई मित्र चाहें तो मात्र उपचार के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं। मनो-शारीरिक रोगों हेतु डिवाइन हीलिंग का प्रयोग अद्भुत है।

    ~ स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

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